तीन पत्ती: ऑनलाइन खेलने का सबसे रोमांचक तरीका
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read moreविवेक ओबेरॉय, बॉलीवुड का एक ऐसा नाम जो प्रतिभा, संघर्ष और दृढ़ संकल्प की कहानी बयां करता है। एक अभिनेता के रूप में उनकी यात्रा उतार-चढ़ावों से भरी रही है, लेकिन उन्होंने हमेशा अपनी कला के प्रति समर्पण बनाए रखा है। आज हम विवेक ओबेरॉय के जीवन, करियर और उन प्रेरणादायक पलों पर प्रकाश डालेंगे जो उन्हें एक खास शख्सियत बनाते हैं।
विवेक ओबेरॉय का जन्म हैदराबाद में हुआ था। उनके पिता, सुरेश ओबेरॉय, एक जाने-माने अभिनेता हैं, और उनकी मां, यशोधरा ओबेरॉय, एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। एक फिल्मी परिवार से होने के बावजूद, विवेक ने अपनी पहचान बनाने के लिए कड़ी मेहनत की। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा मेयो कॉलेज, अजमेर से पूरी की, और फिर अभिनय में रुचि के चलते उन्होंने न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय से फिल्म निर्माण में मास्टर डिग्री हासिल की।
विवेक का मानना है कि शिक्षा जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है, और इसने उन्हें एक बेहतर इंसान बनने में मदद की। उन्होंने हमेशा अपने आसपास की दुनिया को समझने और सीखने की कोशिश की है।
विवेक ओबेरॉय ने 2002 में राम गोपाल वर्मा की फिल्म 'कंपनी' से बॉलीवुड में डेब्यू किया। इस फिल्म में उन्होंने एक गैंगस्टर की भूमिका निभाई थी, और उनकी एक्टिंग को बहुत सराहा गया। 'कंपनी' एक बड़ी हिट साबित हुई, और विवेक रातोंरात स्टार बन गए। इस फिल्म के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिले, जिसमें फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ डेब्यू पुरस्कार भी शामिल है।
शुरुआत में मिली सफलता ने विवेक को और अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अलग-अलग तरह की भूमिकाएं निभाने की कोशिश की, और जल्द ही उन्होंने खुद को एक बहुमुखी अभिनेता के रूप में स्थापित कर लिया।
हालांकि, विवेक ओबेरॉय का करियर हमेशा आसान नहीं रहा। उन्होंने कई बार मुश्किलों का सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। कुछ फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रहीं, और उन्हें आलोचना का भी सामना करना पड़ा। लेकिन विवेक ने इन सब चीजों से सीखा और मजबूत होकर उभरे।
विवेक का कहना है कि असफलताएं जीवन का हिस्सा हैं, और उनसे डरना नहीं चाहिए। उन्होंने हमेशा अपनी गलतियों से सीखने और आगे बढ़ने की कोशिश की है।
विवेक ओबेरॉय ने अपने करियर में कई यादगार फिल्में की हैं। 'साथिया' (2002) में उन्होंने एक रोमांटिक हीरो की भूमिका निभाई, जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया। 'युवा' (2004) में उन्होंने एक छात्र नेता की भूमिका निभाई, और उनकी एक्टिंग को क्रिटिक्स ने भी सराहा। 'शूटआउट एट लोखंडवाला' (2007) में उन्होंने एक पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका निभाई, जो बहुत ही दमदार थी। इसके अलावा, उन्होंने 'कृष 3' (2013) और 'पीएम नरेंद्र मोदी' (2019) जैसी फिल्मों में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। विवेक ओबेरॉय की अभिनय क्षमता हर किरदार में झलकती है।
विवेक का मानना है कि एक अभिनेता के रूप में उनका काम लोगों को मनोरंजन प्रदान करना और उन्हें प्रेरित करना है। उन्होंने हमेशा ऐसी भूमिकाएं निभाने की कोशिश की है जो समाज को एक सकारात्मक संदेश दे सकें।
विवेक ओबेरॉय न केवल एक अभिनेता हैं, बल्कि एक समाजसेवी भी हैं। उन्होंने कई सामाजिक कार्यों में भाग लिया है और लोगों की मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। उन्होंने कैंसर पीड़ितों, गरीब बच्चों और जरूरतमंद लोगों के लिए कई चैरिटी कार्यक्रम आयोजित किए हैं।
विवेक का मानना है कि हर व्यक्ति को समाज के लिए कुछ करना चाहिए। उन्होंने हमेशा लोगों को प्रेरित किया है कि वे दूसरों की मदद करें और दुनिया को
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