Relive the Thrill: Yesterday's PKL Match Highlights
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read moreभारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर, उर्जित पटेल, एक ऐसा नाम है जो भारतीय अर्थव्यवस्था और वित्तीय जगत में गहराई से गूंजता है। उनका कार्यकाल उतार-चढ़ावों से भरा रहा, लेकिन उनकी विद्वता और आर्थिक सिद्धांतों की गहरी समझ ने उन्हें एक सम्माननीय स्थान दिलाया है। आइये, उनकी यात्रा, योगदान और विवादों पर एक नज़र डालते हैं।
उर्जित पटेल का जन्म 28 अक्टूबर 1963 को केन्या में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा भी वहीं हुई। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से स्नातक की डिग्री हासिल की और फिर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से एमफिल की उपाधि प्राप्त की। उनकी अकादमिक उत्कृष्टता यहीं नहीं रुकी, उन्होंने येल विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री भी हासिल की। उनकी शिक्षा का दायरा उन्हें आर्थिक नीतियों और वैश्विक वित्तीय परिदृश्य को समझने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता था।
उर्जित पटेल ने 1990 के दशक में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में एक अर्थशास्त्री के रूप में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने भारत सरकार के कई मंत्रालयों में सलाहकार के रूप में भी काम किया। 2013 में, उन्हें भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का डिप्टी गवर्नर नियुक्त किया गया। डिप्टी गवर्नर के रूप में, उन्होंने मौद्रिक नीति, आर्थिक अनुसंधान और सांख्यिकी जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने मौद्रिक नीति ढांचे को आधुनिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका उद्देश्य मुद्रास्फीति को लक्षित करना और मूल्य स्थिरता बनाए रखना था।
सितंबर 2016 में, उर्जित पटेल को रघुराम राजन के बाद भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का गवर्नर नियुक्त किया गया। उनका कार्यकाल कई चुनौतियों से भरा रहा, जिनमें नोटबंदी, बैंकों का बढ़ता एनपीए (गैर-निष्पादित संपत्ति) और सरकार के साथ कुछ नीतिगत मतभेद शामिल थे।
8 नवंबर 2016 को, भारत सरकार ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को रातोंरात अमान्य घोषित कर दिया। इस कदम का उद्देश्य काले धन, नकली मुद्रा और आतंकवाद के वित्तपोषण पर अंकुश लगाना था। उर्जित पटेल के गवर्नर रहते हुए यह सबसे बड़ा नीतिगत फैसला था। नोटबंदी के दौरान, RBI ने नई मुद्रा जारी करने और बैंकों में नकदी के प्रवाह को प्रबंधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस दौरान लोगों को काफी परेशानी हुई और अर्थव्यवस्था पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा। नोटबंदी के क्रियान्वयन को लेकर उर्जित पटेल की काफी आलोचना भी हुई।
उर्जित पटेल के कार्यकाल में बैंकों का एनपीए (गैर-निष्पादित संपत्ति) एक बड़ी समस्या बनकर उभरा। उन्होंने बैंकों को एनपीए की पहचान करने और उनके समाधान के लिए सख्त कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) को लागू करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका उद्देश्य एनपीए की समस्या का समाधान करना था।
उर्जित पटेल के कार्यकाल में RBI और सरकार के बीच कुछ नीतिगत मतभेद भी सामने आए। सरकार चाहती थी कि RBI ब्याज दरों में कटौती करे और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए अधिक उदार नीति अपनाए। वहीं, उर्जित पटेल मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे। इन मतभेदों के कारण अंततः दिसंबर 2018 में उर्जित पटेल ने गवर्नर के पद से इस्तीफा दे दिया।
उर्जित पटेल के इस्तीफे ने भारतीय अर्थव्यवस्था और राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी। उनके इस्तीफे के कारणों को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई गईं। कुछ लोगों का मानना था कि सरकार के साथ नीतिगत मतभेदों के कारण उन्होंने इस्तीफा दिया, जबकि कुछ लोगों का कहना था कि व्यक्तिगत कारणों से उन्होंने यह फैसला लिया। उनके इस्तीफे के बाद, शक्तिकांत दास को RBI का गवर्नर नियुक्त किया गया।
उर्जित पटेल एक विद्वान अर्थशास्त्री और कुशल प्रशासक हैं। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था और वित्तीय क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनका कार्यकाल चुनौतियों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और दृढ़ता से उनका सामना किया। नोटबंदी, एनपीए की समस्या और सरकार के साथ मतभेद उनके कार्यकाल की कुछ प्रमुख घटनाएं रहीं। उर्जित पटेल के इस्तीफे के बाद, भारतीय रिजर्व बैंक के कामकाज और स्वतंत्रता को लेकर कई सवाल उठे।
शक्तिकांत दास के RBI गवर्नर बनने के बाद, मौद्रिक नीति और वित्तीय स्थिरता के दृष्टिकोण में बदलाव आया है। शक्तिकांत दास ने सरकार के साथ बेहतर तालमेल बिठाने और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया है। उन्होंने ब्याज दरों में कई बार कटौती की है और बैंकों को अधिक ऋण देने के लिए प्रोत्साहित किया है।
उर्जित पटेल का नाम भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा। उन्होंने एक ऐसे समय में RBI का नेतृत्व किया जब भारतीय अर्थव्यवस्था कई चुनौतियों का सामना कर रही थी। उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता, दृढ़ता और आर्थिक सिद्धांतों की गहरी समझ से इन चुनौतियों का सामना किया। उर्जित पटेल का योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था को एक मजबूत और स्थिर बनाने में महत्वपूर्ण रहा है। उनका कार्यकाल एक मिसाल है कि कैसे एक केंद्रीय बैंक को अपनी स्वतंत्रता बनाए रखते हुए सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिए।
उर्जित पटेल एक जटिल व्यक्तित्व हैं। उनकी नीतियों और फैसलों को लेकर अलग-अलग राय हो सकती हैं, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनका कार्यकाल भारतीय रिजर्व बैंक के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। आज भी, उनकी नीतियों और फैसलों का विश्लेषण किया जाता है और उनसे सीख ली जाती है। उर्जित पटेल की विरासत भारतीय अर्थव्यवस्था को एक मजबूत और स्थिर बनाने के लिए आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।
आजकल, ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म का चलन बढ़ रहा है, और लोग विभिन्न प्रकार के गेम खेल रहे हैं। ऐसे में, उर्जित पटेल जैसे आर्थिक विशेषज्ञों के विचार और विश्लेषण अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं को समझने में मददगार साबित हो सकते हैं।
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