Uniraj Result: Check Your Rajasthan University Result
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read moreमिल्खा सिंह, एक ऐसा नाम जो भारतीय खेल इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है। वे केवल एक धावक नहीं थे, बल्कि एक प्रेरणा थे, एक प्रतीक थे अदम्य साहस और अटूट संकल्प का। उनकी कहानी भारत की युवा पीढ़ी को हमेशा प्रेरित करती रहेगी। उनकी उपलब्धियां, उनके संघर्ष और उनकी सादगी, उन्हें एक किंवदंती बनाती हैं। मिल्खा सिंह का जीवन एक खुली किताब की तरह है, जिससे हर कोई कुछ न कुछ सीख सकता है।
मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा, पाकिस्तान (तत्कालीन भारत) में एक सिख राठौर परिवार में हुआ था। उनका बचपन गरीबी और संघर्षों में बीता। 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान, मिल्खा सिंह ने अपने माता-पिता और कई रिश्तेदारों को खो दिया। यह त्रासदी उनके जीवन का एक गहरा आघात थी, जिसने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया था। विभाजन के दौरान हुई हिंसा और अराजकता ने उन्हें जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण दिया।
विभाजन के बाद, मिल्खा सिंह दिल्ली आ गए और अपने भाई के साथ रहने लगे। उन्होंने सेना में भर्ती होने की कोशिश की, लेकिन शुरुआती प्रयासों में असफल रहे। आखिरकार, 1952 में उन्हें सेना में नौकरी मिल गई। सेना में ही उन्हें एथलेटिक्स में अपनी प्रतिभा का पता चला।
सेना में आने के बाद, मिल्खा सिंह ने कड़ी मेहनत और लगन से प्रशिक्षण लेना शुरू किया। उनके कोच हवलदार गुरुदेव सिंह ने उन्हें सही मार्गदर्शन दिया और उनकी प्रतिभा को निखारा। मिल्खा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में विशेषज्ञता हासिल की और जल्द ही राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना ली। उनकी गति और सहनशक्ति ने सभी को चकित कर दिया।
1956 के मेलबर्न ओलंपिक में, मिल्खा सिंह ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। हालांकि वे पदक नहीं जीत पाए, लेकिन उन्होंने अपनी गति से दुनिया को प्रभावित किया। इस अनुभव ने उन्हें और अधिक मेहनत करने और बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित किया।
1960 के रोम ओलंपिक मिल्खा सिंह के करियर का सबसे महत्वपूर्ण पल था। 400 मीटर दौड़ में, वे पदक जीतने के प्रबल दावेदार थे। उन्होंने सेमीफाइनल में शानदार प्रदर्शन किया और नया रिकॉर्ड बनाया। फाइनल में, वे शुरुआती दौर में आगे थे, लेकिन एक गलती के कारण उनकी गति धीमी हो गई और वे चौथे स्थान पर रहे।
रोम ओलंपिक में पदक जीतने से चूकने का मिल्खा सिंह को गहरा दुख हुआ, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी गलतियों से सीखा और और अधिक मेहनत करने का फैसला किया। उनकी यह दौड़ आज भी भारतीय खेल इतिहास के सबसे यादगार पलों में से एक है। भले ही वे पदक नहीं जीत पाए, लेकिन उन्होंने करोड़ों भारतीयों के दिलों में जगह बना ली। मिल्खा सिंह की इस दौड़ ने भारत में एथलेटिक्स को एक नई पहचान दी।
मिल्खा सिंह ने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कीं। उन्होंने 1958 के एशियाई खेलों में 200 मीटर और 400 मीटर में स्वर्ण पदक जीते। उसी वर्ष, उन्होंने कार्डिफ़ में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर में स्वर्ण पदक जीता, जो भारत के लिए पहला राष्ट्रमंडल खेलों का स्वर्ण पदक था। 1962 के एशियाई खेलों में, उन्होंने 400 मीटर और 4x400 मीटर रिले में स्वर्ण पदक जीते।
मिल्खा सिंह को 1959 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया, जो भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। उन्हें अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। उनकी उपलब्धियों को भारत सरकार और विभिन्न खेल संगठनों ने सराहा।
मिल्खा सिंह का जीवन एक प्रेरणादायक कहानी है
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