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read moreजॉन बोल्टन, एक ऐसा नाम जो अमेरिकी विदेश नीति के गलियारों में गूंजता है। उनकी पहचान एक तीखे और कट्टरपंथी रूढ़िवादी के रूप में है। बोल्टन का करियर कई अमेरिकी राष्ट्रपतियों के अधीन रहा है और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैसे महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है। लेकिन उनकी राह हमेशा विवादों से घिरी रही है।
जॉन रॉबर्ट बोल्टन का जन्म 20 नवंबर, 1948 को बाल्टीमोर, मैरीलैंड में हुआ था। उन्होंने येल विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बाद में येल लॉ स्कूल से कानून की डिग्री हासिल की। यहीं से उनके राजनीतिक और वैचारिक रुझानों ने आकार लेना शुरू किया। उन्होंने युवावस्था में ही खुद को एक रूढ़िवादी के रूप में स्थापित कर लिया था।
बोल्टन का राजनीतिक करियर रीगन प्रशासन के दौरान शुरू हुआ, जहां उन्होंने न्याय विभाग में काम किया। इसके बाद, उन्होंने जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश प्रशासन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन शुरुआती वर्षों में, उन्होंने अपनी कानूनी और राजनीतिक क्षमताओं का प्रदर्शन किया और धीरे-धीरे वाशिंगटन डी.सी. के राजनीतिक हलकों में अपनी पहचान बनाई।
जॉन बोल्टन का सबसे महत्वपूर्ण दौर जॉर्ज डब्ल्यू. बुश प्रशासन में आया। 2001 में, उन्हें शस्त्र नियंत्रण और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के लिए अवर सचिव नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए, उन्होंने कई विवादास्पद फैसले लिए और अंतरराष्ट्रीय संधियों के प्रति सख्त रवैया अपनाया। john bolton का मानना था कि अमेरिका को अपनी संप्रभुता की रक्षा करनी चाहिए और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से स्वतंत्र रूप से कार्य करना चाहिए।
2005 में, जॉन बोल्टन को संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत नियुक्त किया गया। यह नियुक्ति भी विवादों से घिरी रही, क्योंकि डेमोक्रेटिक सांसदों ने उनके नामांकन का विरोध किया। हालांकि, बुश प्रशासन ने उन्हें नियुक्त करने में सफलता प्राप्त की। संयुक्त राष्ट्र में अपने कार्यकाल के दौरान, बोल्टन ने कई सुधारों की वकालत की और अंतरराष्ट्रीय संगठन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। उनका मानना था कि संयुक्त राष्ट्र में भ्रष्टाचार और अक्षमता व्याप्त है और इसमें सुधार की सख्त जरूरत है।
2018 में, डोनाल्ड ट्रम्प ने जॉन बोल्टन को अपना राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया। यह नियुक्ति एक बार फिर विवादों में घिर गई, क्योंकि बोल्टन के कट्टरपंथी विचारों को लेकर चिंताएं जताई गईं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में, बोल्टन ने ईरान, उत्तर कोरिया और वेनेजुएला जैसे देशों के प्रति सख्त रवैया अपनाया। उन्होंने अमेरिका को ईरान परमाणु समझौते से हटाने और उत्तर कोरिया पर अधिकतम दबाव बनाने की वकालत की। john bolton की विदेश नीति "अमेरिका फर्स्ट" के सिद्धांत पर आधारित थी, जिसके तहत अमेरिकी हितों को प्राथमिकता दी जाती थी।
सितंबर 2019 में, जॉन बोल्टन को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद से हटा दिया गया। ट्रम्प और बोल्टन के बीच विदेश नीति को लेकर गहरे मतभेद थे। ट्रम्प ने बोल्टन के कट्टरपंथी विचारों को अस्वीकार कर दिया और उनसे अलग रास्ता चुना। बोल्टन की विदाई के बाद, ट्रम्प प्रशासन ने विदेश नीति में कुछ बदलाव किए।
जॉन बोल्टन का करियर विवादों से भरा रहा है। उन पर युद्ध-समर्थक होने और अंतरराष्ट्रीय कानून की अवहेलना करने के आरोप लगते रहे हैं। उनके आलोचकों का कहना है कि वे एक कट्टरपंथी हैं जो कूटनीति और बातचीत में विश्वास नहीं करते हैं। बोल्टन के समर्थकों का तर्क है कि वे एक देशभक्त हैं जो अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनका मानना है कि बोल्टन ने हमेशा सिद्धांतों पर आधारित होकर काम किया है और उन्होंने कभी भी अपने विचारों से समझौता नहीं किया।
जॉन बोल्टन ईरान के प्रति अपने सख्त रवैये के लिए जाने जाते हैं। उनका मानना है कि ईरान एक खतरनाक देश है जो परमाणु हथियार विकसित करने की कोशिश कर रहा है। बोल्टन ने अमेरिका को ईरान परमाणु समझौते से हटाने और ईरान पर अधिकतम दबाव बनाने की वकालत की। उन्होंने यह भी कहा है कि अमेरिका को ईरान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने से भी नहीं हिचकिचाना चाहिए। john bolton के इस रवैये की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई है, लेकिन उन्होंने हमेशा अपने विचारों का बचाव किया है।
उत्तर कोरिया के प्रति भी जॉन बोल्टन का रवैया सख्त रहा है। उन्होंने उत्तर कोरिया पर परमाणु हथियार कार्यक्रम को छोड़ने के लिए दबाव बनाने की वकालत की। बोल्टन ने यह भी कहा है कि अमेरिका को उत्तर कोरिया के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने से भी नहीं हिचकिचाना चाहिए। उनके इस रवैये को लेकर भी काफी विवाद हुआ है।
राजनीति से अलग, जॉन बोल्टन एक लेखक भी हैं। उन्होंने कई किताबें और लेख लिखे हैं जिनमें उन्होंने अपनी विदेश नीति के विचारों को व्यक्त किया है। उनकी सबसे प्रसिद्ध किताब "द रूम व्हेयर इट हैपेंड" (The Room Where It Happened) है, जो ट्रम्प प्रशासन में उनके अनुभवों पर आधारित है। इस किताब में, बोल्टन ने ट्रम्प प्रशासन की नीतियों और फैसलों पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। यह किताब काफी विवादित रही और इसे व्यापक रूप से पढ़ा गया।
जॉन बोल्टन एक विवादास्पद व्यक्ति हैं, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि उन्होंने अमेरिकी विदेश नीति पर गहरा प्रभाव डाला है। उनके विचारों और कार्यों को लेकर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन उनकी प्रतिभा और समर्पण को नकारा नहीं जा सकता। बोल्टन का करियर अमेरिकी इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और उनके बारे में जानना जरूरी है ताकि हम समझ सकें कि अमेरिकी विदेश नीति कैसे काम करती है। वह एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने सिद्धांतों पर आधारित होकर काम किया और कभी भी अपने विचारों से समझौता नहीं किया।
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