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read moreजितिया, जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है, भारत के कई हिस्सों में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है, खासकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में। यह व्रत माताओं द्वारा अपनी संतानों की लंबी आयु, स्वास्थ्य और खुशहाली के लिए रखा जाता है। यह एक कठिन व्रत है, जिसमें महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं। इस व्रत का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यह पारिवारिक संबंधों को भी मजबूत करता है। आइए, इस व्रत से जुड़ी कथाओं, विधियों और महत्व को विस्तार से जानें।
जितिया व्रत का मुख्य उद्देश्य संतान की रक्षा करना है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से बच्चों पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं और वे स्वस्थ और दीर्घायु जीवन जीते हैं। यह व्रत पितृ पक्ष के दौरान मनाया जाता है, जो इसे और भी महत्वपूर्ण बनाता है। पितृ पक्ष में पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यह व्रत एक उत्तम उपाय माना जाता है।
एक बार मेरी दादी ने बताया था कि उनकी माँ, यानी मेरी परदादी, हर साल यह व्रत बड़ी श्रद्धा से रखती थीं। वे बताती थीं कि कैसे व्रत के दौरान वे पूरा दिन बिना पानी पिए, केवल अपने बच्चों की कुशलता की प्रार्थना करती थीं। यह सुनकर मुझे हमेशा इस व्रत के प्रति बहुत सम्मान महसूस होता है।
जितिया व्रत से जुड़ी कई कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध कथा जीमूतवाहन की है। जीमूतवाहन एक दयालु राजकुमार थे, जिन्होंने अपना राजपाट त्यागकर वन में रहने का निर्णय लिया था। एक दिन, उन्होंने देखा कि एक नाग माता अपने पुत्र को गरुड़ के भक्षण के लिए विवश है। जीमूतवाहन ने उस नाग पुत्र को बचाने के लिए स्वयं को गरुड़ के सामने प्रस्तुत कर दिया। गरुड़ उनकी दयालुता से प्रभावित हुआ और उसने नागों को न मारने का वचन दिया। जीमूतवाहन की इस त्याग और बलिदान की भावना के कारण ही माताओं द्वारा यह व्रत रखा जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, एक गाँव में दो ब्राह्मण स्त्रियाँ थीं - एक धनवान और दूसरी गरीब। धनवान स्त्री ने व्रत रखा, लेकिन दिखावे के लिए, जबकि गरीब स्त्री ने सच्ची श्रद्धा से व्रत किया। परिणामस्वरूप, धनवान स्त्री के पुत्र की मृत्यु हो गई, जबकि गरीब स्त्री का पुत्र सुरक्षित रहा। इस कथा से यह सीख मिलती है कि व्रत को सच्चे मन और श्रद्धा से करना चाहिए, न कि दिखावे के लिए।
जितिया व्रत तीन दिनों तक चलता है। व्रत की शुरुआत कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से होती है।
व्रत के दौरान, महिलाएं समूह में बैठकर लोकगीत गाती हैं और पारंपरिक नृत्य करती हैं। यह एक सामाजिक अवसर भी होता है, जहाँ महिलाएं एक-दूसरे से मिलती हैं और अपनी खुशियाँ और दुख बाँटती हैं। मेरी माँ बताती हैं कि कैसे वे और उनकी सहेलियाँ मिलकर जितिया के गीत गाती थीं, जिससे व्रत का कठिन समय भी आसानी से कट जाता था।
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