SCO Summit 2025: Forging Future Alliances
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read moreजितिया, जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो मुख्य रूप से माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी उम्र और कल्याण के लिए मनाया जाता है। यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। जितिया व्रत का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यह पारिवारिक मूल्यों और मातृ प्रेम का प्रतीक भी है। jitiya vrat katha का पाठ इस व्रत का अभिन्न अंग है और इसे सुनने से व्रत का फल मिलता है।
जितिया व्रत का महत्व इस बात में निहित है कि यह माता और संतान के बीच अटूट बंधन को दर्शाता है। माताएं अपने बच्चों की सुरक्षा और खुशहाली के लिए निर्जला व्रत रखती हैं, यानी वे पूरे दिन बिना पानी पिए उपवास करती हैं। यह व्रत तीन दिनों तक चलता है और इसमें कई तरह के अनुष्ठान शामिल होते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जितिया व्रत की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। कहा जाता है कि जब महाभारत युद्ध समाप्त हुआ, तो द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए पांडवों के शिविर में घुसकर सोते हुए सैनिकों की हत्या कर दी थी। उस समय, उत्तरा के गर्भ में पल रहा शिशु भी अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से प्रभावित हो गया था। भगवान कृष्ण ने अपनी शक्ति से उस शिशु की रक्षा की थी। उसी घटना की स्मृति में यह व्रत किया जाता है। यह व्रत बच्चों को हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा से बचाने का प्रतीक है।
जितिया व्रत तीन दिनों तक चलता है और इसकी विधि इस प्रकार है:
जितिया व्रत के दौरान, महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। जीमूतवाहन एक पौराणिक राजा थे जो अपनी उदारता और त्याग के लिए जाने जाते थे। उन्होंने नागों की रक्षा के लिए गरुड़ को अपनी जान दे दी थी। जीमूतवाहन की पूजा करने से बच्चों को लंबी उम्र और खुशहाली मिलती है।
जितिया व्रत कथा एक महत्वपूर्ण कहानी है जो इस व्रत के महत्व को दर्शाती है। यह कहानी जीमूतवाहन और नाग माता की है।
कथा के अनुसार, एक समय की बात है, एक जंगल में एक नाग माता रहती थी। वह हर साल अपने बच्चों को बचाने के लिए एक विशेष पूजा करती थी। एक बार, जीमूतवाहन नाम के एक दयालु राजा ने नाग माता को पूजा करते हुए देखा। उन्होंने नाग माता से पूछा कि वह यह पूजा क्यों कर रही है। नाग माता ने बताया कि वह अपने बच्चों को गरुड़ से बचाने के लिए यह पूजा कर रही है। गरुड़ हर साल नागों को मारकर खा जाता था।
जीमूतवाहन ने नाग माता से वादा किया कि वह उसके बच्चों को गरुड़ से बचाएगा। अगले दिन, जब गरुड़ नागों को खाने आया, तो जीमूतवाहन ने खुद को गरुड़ के सामने पेश कर दिया। गरुड़ ने जीमूतवाहन को खा लिया, लेकिन जीमूतवाहन की उदारता और त्याग से प्रभावित होकर, गरुड़ ने नागों को खाना छोड़ दिया।
इस कथा से यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए, भले ही हमें अपनी जान जोखिम में डालनी पड़े। jitiya vrat katha हमें त्याग, उदारता और मातृ प्रेम का महत्व सिखाती है।
जितिया व्रत भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में इस व्रत का विशेष महत्व है। इन क्षेत्रों में, महिलाएं पारंपरिक परिधान पहनती हैं, लोक गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं।
बिहार में, जितिया व्रत को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन, महिलाएं अपने घरों को सजाती हैं और विशेष पकवान बनाती हैं। वे जितिया व्रत कथा सुनती हैं और जीमूतवाहन की पूजा करती हैं।
झारखंड में, जितिया व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से जाना जाता है। इस दिन, महिलाएं नदी या तालाब में स्नान करती हैं और फिर पूजा करती हैं। वे फल, फूल और मिठाई चढ़ाती हैं।
उत्तर प्रदेश में, जितिया व्रत को संतान की लंबी उम्र के लिए मनाया जाता है। इस दिन, महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और भगवान कृष्ण की पूजा करती हैं। वे गरीबों को दान भी देती हैं।
पश्चिम बंगाल में, जितिया व्रत को बहुत श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन, महिलाएं दुर्गा पूजा पंडालों में जाती हैं और देवी दुर्गा की पूजा करती हैं। वे पारंपरिक नृत्य और संगीत में भाग लेती हैं।
आज के आधुनिक युग में भी, जितिया व्रत का महत्व बरकरार है। यह व्रत महिलाओं को अपने बच्चों के प्रति अपने प्रेम और समर्पण को व्यक्त करने का एक अवसर प्रदान करता है। यह व्रत हमें पारिवारिक मूल्यों और परंपराओं को बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि हम व्रत और त्योहारों को अंधविश्वास के रूप में न देखें। हमें इनके पीछे के वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व को समझना चाहिए। व्रत और त्योहार हमें एकजुट रहने, एक-दूसरे की मदद करने और अपने संस्कृति को संरक्षित करने में मदद करते हैं।
जितिया व्रत एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो माता और संतान के बीच अटूट बंधन को दर्शाता है। यह व्रत हमें त्याग, उदारता और मातृ प्रेम का महत्व सिखाता है। jitiya vrat katha इस व्रत का अभिन्न अंग है और इसे सुनने से व्रत का फल मिलता है। यह व्रत हमें पारिवारिक मूल्यों और परंपराओं को बनाए रखने की प्रेरणा देता है। आधुनिक परिप्रेक्ष्य में, हमें व्रत और त्योहारों को अंधविश्वास के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि इनके पीछे के वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व को समझना चाहिए। जितिया व्रत न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव भी है जो हमें एकजुट रहने और अपने संस्कृति को संरक्षित करने में मदद करता है।
जितिया व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।
जितिया व्रत माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी उम्र और कल्याण के लिए मनाया जाता है।
जितिया व्रत में महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं, जीमूतवाहन की पूजा करती हैं और जितिया व्रत कथा सुनती हैं।
जितिया व्रत कथा जीमूतवाहन और नाग माता की कहानी है जो इस व्रत के महत्व को दर्शाती है।
जितिया व्रत भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मनाया जाता है, लेकिन बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में इसका विशेष महत्व है।
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