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read moreबुढ़वा मंगल, जिसे बड़ा मंगल के नाम से भी जाना जाता है, उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व ज्येष्ठ माह के प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी को समर्पित होता है। ज्येष्ठ माह में पड़ने वाले सभी मंगलवारों को बुढ़वा मंगल के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार हनुमान भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है, और इस दिन लोग हनुमान मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं, भंडारे आयोजित करते हैं और दान-पुण्य करते हैं।
बुढ़वा मंगल का महत्व कई कारणों से है। सबसे पहले, यह हनुमान जी की शक्ति और भक्ति का प्रतीक है। हनुमान जी को भगवान राम का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है, और उनकी शक्ति, साहस और निष्ठा की कहानियां लोगों को प्रेरित करती हैं। बुढ़वा मंगल के दिन हनुमान जी की पूजा करने से भक्तों को उनकी कृपा प्राप्त होती है और वे अपने जीवन में सफलता और समृद्धि प्राप्त करते हैं।
दूसरा, बुढ़वा मंगल सामाजिक एकता और सद्भाव का प्रतीक है। इस दिन लोग एक साथ मिलकर पूजा-अर्चना करते हैं, भंडारे आयोजित करते हैं और दान-पुण्य करते हैं। यह त्योहार लोगों को एक-दूसरे के करीब लाता है और समाज में प्रेम और भाईचारे की भावना को बढ़ाता है। मैंने खुद कई बार देखा है कि कैसे अलग-अलग जाति और धर्म के लोग एक साथ मिलकर भंडारे में सेवा करते हैं, जो एक अद्भुत दृश्य होता है।
तीसरा, बुढ़वा मंगल पर्यावरण संरक्षण का भी प्रतीक है। इस दिन लोग पेड़ लगाते हैं, जल स्रोतों को साफ करते हैं और पर्यावरण को स्वच्छ रखने का संकल्प लेते हैं। यह त्योहार लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाता है और उन्हें प्रकृति के संरक्षण के लिए प्रेरित करता है।
बुढ़वा मंगल से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। इनमें से एक कथा के अनुसार, भगवान हनुमान ने ज्येष्ठ माह के मंगलवार को ही भगवान राम के दूत के रूप में लंका में प्रवेश किया था और माता सीता को भगवान राम का संदेश दिया था। इसलिए, इस दिन को हनुमान जी की विजय के रूप में मनाया जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार एक शक्तिशाली राक्षस ने देवताओं और मनुष्यों को परेशान करना शुरू कर दिया था। तब भगवान हनुमान ने ज्येष्ठ माह के मंगलवार को ही उस राक्षस का वध किया था और सभी को उसके अत्याचारों से मुक्त किया था। इसलिए, इस दिन को हनुमान जी के पराक्रम के रूप में मनाया जाता है।
इन कथाओं के अलावा, बुढ़वा मंगल से जुड़ी कई अन्य लोक कथाएं भी प्रचलित हैं, जो इस त्योहार के महत्व को और भी बढ़ाती हैं। इन कथाओं को सुनकर और सुनाकर लोग हनुमान जी के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति को व्यक्त करते हैं।
बुढ़वा मंगल को मनाने के कई तरीके हैं। सबसे पहले, लोग हनुमान मंदिरों में जाकर हनुमान जी की पूजा-अर्चना करते हैं। वे हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं, आरती करते हैं और हनुमान जी को सिंदूर, लड्डू और अन्य प्रसाद चढ़ाते हैं। मंदिरों में इस दिन विशेष सजावट की जाती है और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है।
दूसरा, लोग भंडारे आयोजित करते हैं और गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन कराते हैं। भंडारे में आमतौर पर पूड़ी, सब्जी, हलवा और अन्य व्यंजन परोसे जाते हैं। यह एक प्रकार का सामाजिक सेवा है, जिसमें लोग अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार योगदान करते हैं।
तीसरा, लोग दान-पुण्य करते हैं और गरीबों को वस्त्र, धन और अन्य आवश्यक वस्तुएं दान करते हैं। यह एक प्रकार का धार्मिक कर्तव्य माना जाता है, जिससे पुण्य की प्राप्ति होती है।
चौथा, लोग पेड़ लगाते हैं, जल स्रोतों को साफ करते हैं और पर्यावरण को स्वच्छ रखने का संकल्प लेते हैं। यह एक प्रकार का पर्यावरण संरक्षण का कार्य है, जो वर्तमान समय में बहुत महत्वपूर्ण है।
आज के आधुनिक युग में भी बुढ़वा मंगल का महत्व कम नहीं हुआ है। लोग अभी भी इस त्योहार को उसी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाते हैं जैसे पहले मनाते थे। हालांकि, कुछ बदलाव जरूर आए हैं। अब लोग ऑनलाइन माध्यमों से भी हनुमान जी की पूजा-अर्चना करते हैं, भजन-कीर्तन सुनते हैं और दान-पुण्य करते हैं।
इसके अलावा, अब लोग बुढ़वा मंगल को पर्यावरण संरक्षण के एक अवसर के रूप में भी देख रहे हैं। वे इस दिन पेड़ लगाते हैं, जल स्रोतों को साफ करते हैं और पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए जागरूकता अभियान चलाते हैं। यह एक सकारात्मक बदलाव है, जो इस त्योहार को और भी प्रासंगिक बनाता है।
मैंने अपने जीवन में देखा है कि कैसे बुढ़वा मंगल लोगों को एक साथ लाता है और उनमें सामाजिक एकता और सद्भाव की भावना को बढ़ाता है। यह एक ऐसा त्योहार है जो हमें हमारी संस्कृति और परंपराओं से जोड़ता है और हमें बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित करता है। बुढ़वा मंगल के अवसर पर, मैं सभी से अपील करता हूं कि वे इस त्योहार को श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाएं और समाज और पर्यावरण के लिए अपना योगदान दें।
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरिवर कांपे।
रोग दोष जाके निकट न झांके॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई।
संतन के प्रभु सदा सहाई॥
दे बीरा रघुनाथ पठाए।
लंका जारि सिया सुधि लाए॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई।
जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जारि असुर संहारे।
सियारामजी के काज सवारे॥
लक्ष्मण मूर्छित पड़े धरणी पर।
आनि संजीवन प्राण उबारे॥
पैठि पताल तोरि जमद्वारे।
आनि अहिरावण मारे॥
बाएं भुजा असुर दल मारे।
दाहिने भुजा संत जन तारे॥
सुर नर मुनि आरती गावें।
जय जय जय हनुमान उचारें॥
कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरती करत अंजना माई॥
जो हनुमानजी की आरती गावे।
बसहिं बैकुंठ परम पद पावे॥
आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
बुढ़वा मंगल एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो हनुमान जी की भक्ति, सामाजिक एकता, पर्यावरण संरक्षण और हमारी संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है। यह त्योहार हमें बेहतर इंसान बनने और समाज और पर्यावरण के लिए अपना योगदान देने के लिए प्रेरित करता है। बुढ़वा मंगल के अवसर पर, हमें हनुमान जी के आदर्शों को अपनाना चाहिए और उनके बताए रास्ते पर चलना चाहिए।
इसलिए, आइए हम सब मिलकर इस बुढ़वा मंगल को और भी सार्थक बनाएं और समाज और पर्यावरण के लिए कुछ अच्छा करें। जय हनुमान!
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