राधा अष्टमी: महत्व, तिथि और उत्सव
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read moreभारतीय इतिहास में कई ऐसे वीर योद्धा हुए हैं जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। ऐसे ही एक योद्धा थे लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल, जिन्होंने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में असाधारण वीरता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति प्राप्त की। उनकी कहानी आज भी हर भारतीय को प्रेरित करती है।
अरुण खेत्रपाल का जन्म 14 अक्टूबर, 1950 को पुणे, महाराष्ट्र में एक सैन्य परिवार में हुआ था। उनके पिता, ब्रिगेडियर एम.एल. खेत्रपाल, भी भारतीय सेना में एक प्रतिष्ठित अधिकारी थे। अरुण ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लॉरेंस स्कूल, सनावर से प्राप्त की, जो एक प्रसिद्ध बोर्डिंग स्कूल है। बचपन से ही, अरुण में देशभक्ति और सेना के प्रति गहरा लगाव था। वे हमेशा अपने पिता की तरह एक सैनिक बनकर देश की सेवा करना चाहते थे।
अरुण का सपना आखिरकार 1967 में साकार हुआ जब उन्हें राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में प्रवेश मिला। एनडीए में, उन्होंने न केवल सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त किया बल्कि अपने नेतृत्व और साहस का भी प्रदर्शन किया। एनडीए से स्नातक होने के बाद, उन्हें भारतीय सैन्य अकादमी (IMA), देहरादून में भेजा गया, जहाँ उन्होंने और अधिक गहन प्रशिक्षण प्राप्त किया। 1971 में, अरुण को 17 पूना हॉर्स में एक कमीशन मिला, जो भारतीय सेना की एक प्रतिष्ठित टैंक रेजिमेंट है।
1971 में, भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया। लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को अपनी रेजिमेंट के साथ पश्चिमी सीमा पर तैनात किया गया था। 16 दिसंबर, 1971 को, बसंतर की लड़ाई में, उनकी वीरता और बलिदान की कहानी लिखी गई। बसंतर की लड़ाई एक महत्वपूर्ण टैंक युद्ध था जो शकरगढ़ सेक्टर में लड़ा गया था। पाकिस्तानी सेना ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करने की कोशिश की, लेकिन भारतीय सेना ने उन्हें रोकने के लिए दृढ़ संकल्प दिखाया।
16 दिसंबर को, अरुण की पलटन को पाकिस्तानी सेना के टैंकों के हमले को रोकने का आदेश दिया गया। पाकिस्तानी सेना के पास बेहतर टैंक थे, लेकिन अरुण और उनके साथियों ने हार नहीं मानी। उन्होंने बहादुरी से दुश्मन का सामना किया और कई पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट कर दिया।
लड़ाई के दौरान, अरुण का टैंक क्षतिग्रस्त हो गया, और उनके दो साथी सैनिक शहीद हो गए। लेकिन अरुण ने हार नहीं मानी। उन्होंने अकेले ही दुश्मन का सामना करना जारी रखा। उन्होंने अपने टैंक से दुश्मन के टैंकों पर गोलियां बरसाईं और उन्हें आगे बढ़ने से रोका।
एक समय ऐसा आया जब अरुण का टैंक पूरी तरह से घिर गया था। उन्हें अपने कमांडिंग ऑफिसर से पीछे हटने का आदेश मिला, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वे दुश्मन को आगे नहीं बढ़ने देंगे, चाहे कुछ भी हो जाए।
अरुण ने अकेले ही दुश्मन के टैंकों के खिलाफ लड़ाई जारी रखी। उन्होंने एक और पाकिस्तानी टैंक को नष्ट कर दिया, लेकिन तभी उनके टैंक पर एक गोला आकर लगा। अरुण गंभीर रूप से घायल हो गए, लेकिन उन्होंने अपनी बंदूक नहीं छोड़ी। उन्होंने आखिरी सांस तक दुश्मन का सामना किया।
लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने बसंतर की लड़ाई में असाधारण वीरता और बलिदान का प्रदर्शन किया। उन्होंने अकेले ही दुश्मन के कई टैंकों को नष्ट कर दिया और उन्हें आगे बढ़ने से रोका। उनकी वीरता के कारण, भारतीय सेना ने बसंतर की लड़ाई जीत ली।
अरुण खेत्रपाल को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है। उनकी वीरता की कहानी आज भी हर भारतीय को प्रेरित करती है। वे एक सच्चे देशभक्त और वीर योद्धा थे
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