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read moreअपर्णा সেন, एक ऐसा नाम जो भारतीय सिनेमा में प्रतिभा, संवेदनशीलता और कलात्मक उत्कृष्टता का पर्याय है। एक अभिनेत्री, फिल्म निर्माता और पटकथा लेखक के रूप में, उन्होंने दशकों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया है, अपनी फिल्मों के माध्यम से सामाजिक मुद्दों पर प्रकाश डाला है, और भारतीय सिनेमा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनका काम न केवल मनोरंजन करता है, बल्कि सोचने पर भी मजबूर करता है, यही उनकी कला की सबसे बड़ी खूबी है।
अपर्णा সেন का जन्म 25 अक्टूबर 1945 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता, चिदानंद दासगुप्ता, एक प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक और फिल्म निर्माता थे। इस माहौल ने अपर्णा को बचपन से ही सिनेमा के प्रति आकर्षित किया। उन्होंने अपनी शिक्षा प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता से पूरी की। 1961 में, सत्यजित राय की फिल्म 'तीन कन्या' से उन्होंने अपने अभिनय करियर की शुरुआत की। राय के साथ काम करने का अनुभव उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण था, जिसने उन्हें सिनेमा की बारीकियों को समझने में मदद की।
इसके बाद उन्होंने कई बंगाली फिल्मों में काम किया और जल्द ही एक लोकप्रिय अभिनेत्री बन गईं। उनकी शुरुआती फिल्मों में 'आकाश कुसुम' (1965) और 'एंटनी फिरंगी' (1967) शामिल हैं, जिनमें उनके प्रदर्शन को काफी सराहा गया। अपर्णा सेन ने न केवल बंगाली सिनेमा में, बल्कि हिंदी सिनेमा में भी अपनी पहचान बनाई। उन्होंने कुछ हिंदी फिल्मों में भी काम किया, जिनमें 'इमान धरम' और 'अमर प्रेम' शामिल हैं।
1981 में, अपर्णा সেন ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा। उनकी पहली निर्देशित फिल्म '36 चौरंगी लेन' थी। यह फिल्म एक एंग्लो-इंडियन शिक्षिका वायलेट स्टोनहैम की कहानी थी, जो अकेलेपन और सामाजिक अलगाव से जूझती है। '36 चौरंगी लेन' को न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया। इस फिल्म ने अपर्णा सेन को एक गंभीर फिल्म निर्माता के रूप में स्थापित कर दिया। यह फिल्म इतनी संवेदनशील थी कि इसने दर्शकों के दिलों को छू लिया और उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया।
अपर्णा সেন की फिल्मों में अक्सर महिलाओं के मुद्दों, सामाजिक अन्याय और मानवीय रिश्तों की जटिलताओं को दर्शाया जाता है। उनकी फिल्मों में एक खास तरह की संवेदनशीलता होती है, जो दर्शकों को गहराई से जोड़ती है। उन्होंने हमेशा उन कहानियों को चुना है जो समाज में बदलाव ला सकती हैं और लोगों को सोचने पर मजबूर कर सकती हैं। अपर्णा সেন ने अपने करियर में कई बेहतरीन फिल्में बनाई हैं, जिनमें 'परमा' (1984), 'सती' (1989), 'युगांत' (1995), 'पारोमितार একদিন' (2000), 'मिस्टर एंड मिसेज अय्यर' (2002), '15 पार्क एवेन्यू' (2005), 'द जापानीज वाइफ' (2010), 'गोयनार बाकस' (2013), और 'घरे बाहरे आज' (2019) शामिल हैं।
अपर्णा सेन की फिल्मों की कुछ खास विशेषताएं हैं जो उन्हें अन्य फिल्म निर्माताओं से अलग बनाती हैं:
अप
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