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read moreअहोई अष्टमी, एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार, विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। यह त्योहार माताओं द्वारा अपनी संतानों की लंबी आयु और खुशहाली के लिए मनाया जाता है। करवा चौथ के लगभग चार दिन बाद आने वाली अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। आइए, जानते हैं अहोई अष्टमी 2025 की तिथि, शुभ मुहूर्त और इस व्रत के महत्व के बारे में।
वर्ष 2025 में अहोई अष्टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त इस प्रकार रहने की संभावना है (पंचांग के अनुसार तिथियां भिन्न हो सकती हैं):
सटीक तिथि और मुहूर्त के लिए, स्थानीय पंचांग या किसी ज्योतिषी से परामर्श करना उचित रहेगा।
अहोई अष्टमी का व्रत संतानवती महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं और अहोई माता की पूजा करती हैं। अहोई माता को देवी पार्वती का स्वरूप माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है और बच्चों के जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। यह व्रत न केवल संतान की रक्षा करता है, बल्कि परिवार में सुख-समृद्धि भी लाता है।
मैंने अपनी दादी को हमेशा इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करते देखा है। उनकी श्रद्धा और विश्वास देखकर मुझे भी इस त्योहार की महत्ता समझ में आई। वे बताती थीं कि अहोई माता की कृपा से ही उनका परिवार हमेशा खुशहाल रहा है।
अहोई अष्टमी की पूजा विधि इस प्रकार है:
कुछ लोग चांदी की अहोई भी बनवाते हैं और उसकी पूजा करते हैं। पूजा के दौरान "अहोई अष्टमी 2025 date and time" का मंत्र जाप करना भी शुभ माना जाता है। अहोई अष्टमी 2025 date and time के विषय में अधिक जानकारी के लिए आप किसी धार्मिक वेबसाइट या पंडित से सलाह ले सकते हैं।
अहोई अष्टमी की कथा एक साहूकार की पत्नी की कहानी है, जिसने गलती से सेही के बच्चों को मार दिया था। इस पाप के कारण उसे संतान सुख से वंचित रहना पड़ा। बाद में, उसने पश्चाताप किया और अहोई माता की आराधना की। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अहोई माता ने उसे संतान सुख प्रदान किया। इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी भी जीव को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए और हमेशा क्षमा भाव रखना चाहिए।
आज के आधुनिक युग में भी अहोई अष्टमी का महत्व कम नहीं हुआ है। हालांकि, व्रत रखने के तरीके और पूजा विधि में कुछ बदलाव जरूर आए हैं। अब लोग ऑनलाइन पूजा और कथा का भी सहारा लेते हैं। लेकिन, इस त्योहार का मूल उद्देश्य आज भी वही है - अपनी संतान की रक्षा और खुशहाली की कामना करना।
अहोई अष्टमी, केवल एक व्रत नहीं है, बल्कि यह मातृ प्रेम और संतान के प्रति समर्पण का प्रतीक है। यह त्योहार हमें अपने बच्चों
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